प्राइमरी पाठशाला मुबारकपुर अंजन
नरकट -किरकिट की लेखनी
औ पटलो की नाल
लकड़ी की होती पटरी
स्कूल जाते मिलकर छात्र |
शीशी का मठारना
शीशे की दावात
पटरी कालिख - करते साफ
स्कूल जाते मिलकर छात्र |
पक्का प्रतिज्ञा ले स्कूल निकलते
निकलते पिताजी अपने धंधे में
हम सब चलते कदम ताल
स्कूल जाते मिलकर छात्र |
माता हमको सदा सिखाती
दाना -गुण देकर बहलाती
शिक्षा कभी नहीं बट पाती
स्कूल जाते मिलकर छात्र ||
रोटी कपड़ा और मकान
पढ़ाई के बलपर बबुआन
विविध तरह से हमें समझाती
स्कूल जाते मिलकर छात्र |
अन्धकार शिक्षा भगाए
आस-पास उजाला लाये
घर रौनक से भर जाए
स्कूल जाते मिलकर छात्र |
इससे कभी ना भागना लाल
गमछे के कोने लो बाँध
घर -घर खुशियाँ लाये
स्कूल जाते मिलकर छात्र ||
"सहपाठी मिले "
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फिर वही संगी हमारा फिर वही साथी मिले
हो जनम यदि पुनः तो, मुझे फिर वही सहपाठी मिले |
लड़ता ही रहता है वह हर समय हर मोड़ पर
संघर्ष में संग रहता सदर ,जाता न मुझको छोड़ कर |
हिम्मत -हौसले में है ,उसका तो शानी नहीं
एक सच्चा मित्र है वह ,चलता सबको जोड़कर |
उसका संग वैसे ही जैसे ,बृद्ध बृद्ध को लाठी मिले
हो जनम यदि पुनः ,तो मुझे फिर वही सहपाठी मिले ||
एक रिस्ता है जुड़ा वर्षों पुरानी दोस्ती का,
जिंदगी का एक रिस्ता होता जैसे जिंदगी का,
मीठी -मीठी बात जब तक मित्र से होती नहीं।
खाली खाली खुशियों का लगता है कोना जिंदगी,
प्यार में व्यवहार में फिर वही कद काठी मिले ,
हो जनम यदि पुनः ,तो मुझे फिर वही सहपाठी मिले ||
भोला भाला बन कर मुझको राह दिखलाता चले
जिंदगी है ,चलने वाला ,मीत यह भाता चले
समझ को भी लगे कि समझ समझाता चले
नदी को खुद में समेटे जैसे कोई घाटी चले
मित्रता की 'मंगळ सदा चलती परिपाटी चले
हो जनम यदि पुनः,तो मिले फिर वही सहपाठी मिले ||
"खिली बसंती धुप "
जवाब देंहटाएंखिल उठी बसंती धुप
फिजा भरी अंगड़ाई
चली हवा सुगन्धित ऐसी
प्रिये जब -जब मुस्कायी |
रूप बदल नित नवीन
श्रृंगार ले रौनक लाई
अधरों मुस्कान रहा
प्रिये जब ली अंगड़ाई | |
मन मलिन कभी हुआ
सम्मुख तब तुम आई
खिली बसंती धुप नई
प्रिये मन मुख मुस्कायी |
हृदय ागुंजित स्वर बेला
मंगल- बुद्धि ठकुराई
प्रेमी प्यासा पौरुष पागल
प्रिये पास जब दिखाई |
सब हुए दीवाने तुम्हारे
जादू कैसा हो चलाई
खिली बसंती धुप नई
प्रिये जब तुम मुस्कायी ||
नव वर्ष से पहले "
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नव वर्ष से पहले देश,
मालामाल हो गया |
हठ में फसे बनियान
मानो कंगाल हो रहा |
होटल - मेकप परिधान ,
दवा वा सोना की दूकान ,
वर्ष नया आने के पहले
धमाल कर दिया |
पे टी एम् स्वाइप सिस्टम
कमाल कर दिया |
उज्ज्वला और स्वच्छता ,
नौनिहाल कर दिया ||
नव वर्ष ....||
"मोदी को फिर लाना है "
जवाब देंहटाएं-------------------------
घर - घर जाके हमें -आपको
सबको यह समझाना है
मोदी को फिर से लाना है
भारत भूमि की माटी का
हमको कर्ज चुकाना है
मोदी को फिर से लाना है |
भारत अपना ,पांच साल मे
पाहुचा उच्च शिखर पर
चीन - पाक जैसे दुश्मन
दुबक गये दरबे मे डर कर
हमारे जवानों का दम- खम
पूरे विश्व ने जाना है
मोदी को फिर से लाना है |
चारो ओर रखवाली हो
घर-घर मे खुशहाली हो
बेरोजगारी दूर जा भागे
खेतों में हरियाली हो
वैज्ञानिकों ने भी अपना सीना ताना है
मोदी को फिर से लाना है |
चोर कौन है, भेद यह खोले
कवियों की अब कविता बोले
सच का पहले साथी होले
चोर के संग न डोले
सामी नहीं अब गवाना है
मोदी को फिर से लाना है ||
"काशी बड़ी महान "
जवाब देंहटाएं------------------
जहां होता शिव का गान,
वह काशी बड़ी महान |
ढोल नगाड़ों संग कियो,
मिल जुल स्वागत गान ||
काशी में केसरिया का,
रहा बढ़ा चढ़ा सम्मान |
बता दी काशी की जनता,
मेरा नेता बड़ा महान ||
सियासी रणभेरी सजी
बजी बांसुरी और गिटार,
थे बोल में नमों - नमों,
टिवटर चढ़ा परवान ||
आतिथ्य परम्परा लिए ,
संस्कृति की थी छाप |
मालवीय की बगिया ,
खिली ख़ुशी से आप ||
दुनिया आँख पसारे खड़ी,
इंटरनेट उनके आधार !
भारत भी पीछे कहाँ ,
चौकीदार बार -बार ||
जहां होता शिव का गान,
वह काशी बड़ी महान |
ढोल नगाड़ों संग कियो,
मिल जुल स्वागत गान ||
-सुखमंगल सिंह 'मंगळ'
वाराणसी
“मौसम को बुलाने की सोचिये “—
जवाब देंहटाएंमौसम को इशारों से बुलाने की सोचिये,
रूठा हो गर तो उसे मनाने की सोचिये |
जमाने में कोई दीवाना नहीं होता ,
मचलते दिल को भी मनाने की सोचिये |
खत लिख दो अभी उसे एक प्यार का ‘मंगळ ‘
इस तन्हाई को रंगीन बनाने की सोचिये |
जाग रहे तुम तो मुझे अच्छा नहीं लगता ,
अँधेरे की वही नींद चुराने की सोचिये |
मौसमी मिजाज बढ़ चढ़ सुनाने की सोचिये ,
दिल के उजड़े ख्वाब को खिलाने की सोचिये ||
"घर की याद आती
जवाब देंहटाएं--------------------
अब हमें अपने ,घर की याद आती है
याद करने को अब , कुछ भी नहीं बाकी है |
रिश्ते जन्म- जनम के , सब हो गए पुराने
लगे की सब जैसे , संबंधों की झांकी है |
न किसी का आना ,न किसी का जाना
आने और जाने में , बात बस ज़रा सी बाकी है |
अब हमें अपने ,घर की याद आती है
याद करने को अब , कुछ भी नहीं बाकी है ||
- सुखमंगल सिंह 'मंगल '
वाराणसी
सुविचार
जवाब देंहटाएंआध्यात्मिक भाव जन में आते,
ईश्वर का प्यार मानव पाते हैं।
धर्म की राह पर लोग जाते,
सद्भाव प्रेम दुनिया को दे जाते ।
आरक्षण
जवाब देंहटाएंचंदन टीका पोती के, जनता से दरबार,
नंगे खडे होकर मांगे,आरक्षण सरकार!
आरक्षण - दिखाई
जवाब देंहटाएंबनाके चोला चलें राजकुवर,
करते रहे ठकुराई!
लाभ लबादा चलता देश,
आरक्षण तब दिखाई !
खुल जायेगी कलई!
जवाब देंहटाएंसेना खडी दरवाजे पे तो ही बोल रहे हो भाई,
करते हो मनमानी तू कभी कलई खुल ही जाई।