बुधवार, 24 अगस्त 2016

दादा ! हिंदी साहित्य

दादा तुझे ना देखा फिर भी
याद तुझे कर लेता हूँ |
स्वर्ग गए वा जन्म लिए
कौन किसे देखा है |
लेकिन पिता जी तुझको
पात्र समझकर कर
पत्र लिख रहे मनमाना |
दादी तुझे बुलाती होंगी
जाना है या अनजाना |
कुछ तो बताते जा जहां
बन बैठे हो अनजाना |
दादी मुझपर ध्यान करो
पोता तेरा मनमाना ||

शुक्रवार, 1 जुलाई 2016

"खरबूजा "

खरबूजे ने हमें छकाया
पिकनिक करने का मन आया ,
गाड़ी एक जी खाली लाया |
नदी किनारे रहा निहार,
पहुच गया खेतों के पास |
खीरा ककड़ी और तरबूजा ,
दौरी भर -भर खरबूजा  |
दोपहरी में खरबूजे का साथ,
घर वापसी की भूली बात |
दौरी भर खरबूजा  लाया ,
बी बी को को खूब खिलाया |
लो जी लो दौरी भर लाया ,

खरबूजे ने हमें छकाया || 

मंगलवार, 28 जून 2016

दास्ताने सतहत्तर

"मन ही मन में  गाता"

पहने पनही पाँव की ,
घर छोड़ चला जाता |
फटे हाल जूता पुराना ,
पहन के चला आता |
कितना प्रेम ह्रदय में ,
उमड़ता भाई  नाता|
गिरिजा नंदिनी गीत,
मन ही मन में  गाता ||  

दास्ताने सतहत्तर (२)

जिन्दगी बड़े करीब से देखा ,
मेरी जिन्दगी फुटपाथ लेखा |
बैठकर फुटपाथ पोथी बेचा ,
किताब लिखी  जिन्दगी रेखा |
जीवन गजब है डोर सरीखा ,
डोर में बंधा है पेट से भूखा |
पेट ने हल्दी- घोल -भाजी,
कडाही में बिना तेल भूना ||