सोमवार, 2 अक्तूबर 2017

"इतिहास बनाएं "

इतिहास बनाएं 

नई-नई तकनीक लाकर , खेती को सुगम बनायेंगे
मृदा परीक्षण कराकर ,खेत से दूना अन्न उगायेंगे ||
स्टार्ट अप को अपनाकर ,सहकारिता गुर सिखलाएंगे |
जन-जन को जगाकर ,स्टैड़प अप को अपनाएंगे ||
जागरूकता फैलाकर ,खेती समृद्ध बनायेंगे |
भूखा नहीं रहेगा कोई ,विश्व में परचम लहरायेंगे ||
आई .आई टी.ई. बनाकर ,गोशाला कदम बढ़ाएंगे |
इज्जत घर बनवायेंगे ,आई.आई.एम् भी बढ़ाएंगे ||
झोपड़ियों के दिन बहुरेंगे, पक्के घर भी बनायेंगे |
रोजगार सृजित करायेंगे ,सोना कृषक उगायेंगे ||
गंगा-गौरी-गाय-महत्ता ,दुनिया को समझायेंगे |
विकास होगा हस्त शिल्प का,बैंक में पैसे जायेंगे ||
गति तीब्र होगी भारत की,आर्थिक विकास बढ़ाएंगे |
इतिहास का पन्ना अपना होगा,आगे भारत ले जायेंगे

बुधवार, 30 अगस्त 2017

उच्चारण: ग़ज़ल "सन्तों के भेष में छिपे, हैवान आज तो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

उच्चारण: ग़ज़ल "सन्तों के भेष में छिपे, हैवान आज तो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

आदरनीय शास्त्री जी बहुत गंभीर विषय को आपने उठाया है वास्तव में एसब देश में एक असामाजिक तत्वों को पनपने का मौक़ा दिया अंधविश्वास पैदा किया |देश की छवि को ठेस पहुचाया है | घोर निंदा के योग्य कहा जा सकता है और समाज को आगाह किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया जाना चाहिए जिससे लोगों में भटकाव को रोका जा सके |इनकी वजह से देश के अच्छे संतों को दुःख की अनुभूति होनी स्वाभाविक है |

बुधवार, 9 अगस्त 2017

"अफसर नहीं आते? "

"अफसर नहीं आते ?"

जीवन के संग्रान सुबह ले आते ,
मस्ती में गुर्राते दारू-दरिया पीते |
गलियों में ग्वाले बदबू हैं फैलाते ,
चिट्ठी कबकी पड़ी अफसर नहिआते ||

मंगलवार, 8 अगस्त 2017

"राजनीति "

वर्षों बीते निहार रहा हूँ ,कोई न आया मेरे भैया
मेरी-तेरी गलियन में भौचक -औचक घूमे सोंन  चिरैया |

का तिरस्कार ही तिरस्कार में ,माँ की ममता की नैईया,
राजनीति के द्वारे दिख रहे ,अपने चाचा -चाची भैया |

"राशन की दूकान (कंट्रोल ) "

बोडर की बोरसी भी उम्मीदें छोड़ दिए ,
काशन-आसन की दुकानें बंद मिले ?
चुनना था हमको अपने हिस्से का दाना |
घात लगाए जाल साज बोरी एक दिए ||

नगर-निगम के कागद अभी ना आये


सुन सकते हो तो सुनो सुनाने आये,
इस शहर के नाले लबालब उफनाये |
काले वादल बरसात के है बौखलाए ,
नगर -निगम के कागद अभी ना आये |