उच्चारण: ग़ज़ल "सन्तों के भेष में छिपे, हैवान आज तो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आदरनीय शास्त्री जी बहुत गंभीर विषय को आपने उठाया है वास्तव में एसब देश में एक असामाजिक तत्वों को पनपने का मौक़ा दिया अंधविश्वास पैदा किया |देश की छवि को ठेस पहुचाया है | घोर निंदा के योग्य कहा जा सकता है और समाज को आगाह किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया जाना चाहिए जिससे लोगों में भटकाव को रोका जा सके |इनकी वजह से देश के अच्छे संतों को दुःख की अनुभूति होनी स्वाभाविक है |
बुधवार, 30 अगस्त 2017
बुधवार, 9 अगस्त 2017
"अफसर नहीं आते? "
"अफसर नहीं आते ?"
जीवन के संग्रान सुबह ले आते ,
मस्ती में गुर्राते दारू-दरिया पीते |
गलियों में ग्वाले बदबू हैं फैलाते ,
चिट्ठी कबकी पड़ी अफसर नहिआते ||
मंगलवार, 8 अगस्त 2017
"राजनीति "
वर्षों बीते निहार रहा हूँ ,कोई न आया मेरे भैया
मेरी-तेरी गलियन में भौचक -औचक घूमे सोंन चिरैया |
का तिरस्कार ही तिरस्कार में ,माँ की ममता की नैईया,
राजनीति के द्वारे दिख रहे ,अपने चाचा -चाची भैया |
मेरी-तेरी गलियन में भौचक -औचक घूमे सोंन चिरैया |
का तिरस्कार ही तिरस्कार में ,माँ की ममता की नैईया,
राजनीति के द्वारे दिख रहे ,अपने चाचा -चाची भैया |
"राशन की दूकान (कंट्रोल ) "
बोडर की बोरसी भी उम्मीदें छोड़ दिए ,
काशन-आसन की दुकानें बंद मिले ?
चुनना था हमको अपने हिस्से का दाना |
घात लगाए जाल साज बोरी एक दिए ||
काशन-आसन की दुकानें बंद मिले ?
चुनना था हमको अपने हिस्से का दाना |
घात लगाए जाल साज बोरी एक दिए ||
नगर-निगम के कागद अभी ना आये
सुन सकते हो तो सुनो सुनाने आये,
इस शहर के नाले लबालब उफनाये |
काले वादल बरसात के है बौखलाए ,
नगर -निगम के कागद अभी ना आये |
इस शहर के नाले लबालब उफनाये |
काले वादल बरसात के है बौखलाए ,
नगर -निगम के कागद अभी ना आये |
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