शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

चिड़िया

चिड़िया 

"चिड़िया"
चीं चीं करती चिड़िया आती
अम्बर ऊपर घोसला बनातीं |
पानी जहां पर वहाँ मडरातीं
जमी से उड़ -------- जाती
सुखमंगल सिंह

4 टिप्‍पणियां:

  1. "स्वार्थ चढ़ा "
    स्वार्थ सने से सम्बन्ध ,
    नाहक निःस्वार्थ बात !
    बडको बेटा बगल बहल ,
    छट्पटात छोटको छांटत ||
    - सुखमंगल सिंह
    वाराणसी

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  2. "जनता "(व्यंग रचना )
    जनता मादर जोक हो गइल !
    लट्यावय के शोक हो गइल ?
    अच्छा- बुरा न जो जाने !
    माई बिन कोख हो गइल ||
    - सुख मंगल सिंह

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  3. "नदी की धार "
    किस नदी का घाट बनाया गया है ?
    आज-कल साफ सुथरा कराया गया है |
    विविध यतन जतन से चमकाया गया है ,
    सीढ़ियां दर सीढ़ियां खूब सजाई गई हैं ||
    फूल गुंछों में महक-महकाया गया है ,
    उड़ेल इत्र - गुलाल गमकाया गया है ?
    चमगादड-चालबाजी के बचाया गया है ,
    किस नदी का घाट बनाया गया है ??
    खुशनुमा-शहर चौकस चमकाया गया है ,
    जाने!कहाँ कहाँ क सुगंध लाया गया है |
    सीढ़ियां - धरातल नीक बनाया गया है ,
    किसी नदी का घाट बनाया गया है ||
    - सुखमंगल सिंह 'मंगल'
    वाराणसी

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  4. "ईसा जतन करें"
    चूल्हा,चौंका रोटी पानी
    घर - घर यही कहानी
    भूखा पेट कोई मिल जाए
    आओ उसे भरें
    हरी भरी हो सबकी बगिया
    ईसा जतन करें
    गांव, गली,चौबारे गूंजे
    तुलसी और कबीर की बानी
    चूल्हा चौका रोटी पानी
    हर चौख ट दरवाजे गाये
    शुभ शुभ मंगल गीत
    शत्रु अगर कोई मिल जाए
    वह भी बन जाए मन मीत
    बूढ़ा मन महसूस करे कि
    आ ई लौट के पुनः जवानी
    चूल्हा चौका रोटी पानी ।।
    - सुख मंगल सिंह, वाराणसी

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